Wednesday 16 February, 2011

आज को संवार बन्दे

आज पहली चौपाल में प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी एक तुकबंदी , जो कभी मैंने अपने एक मित्र को निराश देखकर लिखी थी ..

क्या हुआ जो तू हार गया
 इस दौड़ में बन्दे ,
दौड़ने के मौके अभी कई
और  मिलेंगे

क्यों है तू निराश बन्दे,
क्यों होता उदास बन्दे
जो बीता सो बीता
अब आज को संवार बन्दे.

जो था नहीं मुक्कदर में,
उसके लिए क्यों आंसू बहाना
अब के नहीं तुझे  भटकना
बस है चलते ही जाना

क्या हुआ इस बार तू
जो चूक गया बन्दे,
जीतने के मौके  अभी
कई और मिलेंगे.

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