Monday 25 July, 2011

मम्मी की पुष्पवाटिका

मम्मी की पुष्पवाटिका इन दिनों पूरे शबाब पर है. स्कूल,खेत, घर के काम के अलावा मम्मी कुछ समय अपनी व्यस्तम दिनचर्या में से फूलों के लिए भी निकालती हैं. दिसम्बर से मम्मी गमलों की सफाई, गुडाई, ...... में लगी है.
                फोटोग्राफी मेरा शौक है, पर अभी तक अपने ब्लॉग में खुद खींची हुई फोटो नहीं लगाई थी. पहली बार लगा रहा हूँ, फूलों के नाम मत पूछियेगा, मुझे भी नहीं पता हैं. आपको पता हैं, तो बताइयेगा ज़रूर.














Saturday 23 July, 2011

मेरे अनुभव : साविद्या के साथ -३

(आठवें सेमेस्टर की परीक्षाओं के बाद कुछ माह एक गैर सरकारी संगठन  "साविद्या" (साविद्या की वेबसाइट के लिए क्लिक करें) में काम किया , जो  पिछड़े सरकारी विद्यालयों के उन्नयन के लिए  काम करती है. साविद्या स्मारिका २०११ में "मेरे अनुभव : साविद्या के साथ " इसी शीर्षक के साथ मेरा छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ है , जिसका पहला व दूसरा भाग प्रस्तुत कर चुका हूँ , पेश है तीसरा एवं अंतिम भाग .....)
भाग - ३ 
                 मैं पुनः लिख रहा हूँ , ये छात्र-छात्राएं निर्धन नहीं हैं, अपितु निर्धन है तो हमारी शिक्षा प्रणाली तथा सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत, जो इन्हें निर्धन ही रहने देती है. छात्रों के जवाबों ने मुझे कई बार आश्चर्यचकित किया. एक उदाहरण प्रस्तुत करूँगा. एक बार खर्ककार्की में घर्षण बल समझाने के बाद मैंने छात्रों से पूछा, अपने जीवन या आसपास से घर्षण का कोई उदाहरण दो. एक छात्र खड़ा हुआ और बोला, " सर चप्पल, जब वो घिस जाते हैं तो हम फिसलते हैं." मैं आश्चर्यचकित था, क्या उदाहरण था, उस छात्र ने घर्षण का बिल्कुल व्यावहारिक उदाहरण दिया जो वह अपने जीवन में अनुभव कर चुका था.क्या आप अब भी कहेंगे की ये छात्र गरीब हैं,पिछड़े हैं. ऐसे ही कई उदाहरण मेरे सामने आये जो प्रदर्शित करते हैं क़ि मेधा व प्रतिभा की कमी नहीं है इन बच्चों में. कमी है तो प्रयासों क़ि जो इन्हें निखार सकें. और यही प्रयास 'साविद्या' कर रही है, चम्पावत क्षेत्र में अपने सात अंगीकृत विद्यालयों में हर उस सुविधा और मौके को उपलब्ध करा कर, जो सरकारी तंत्र नहीं करा पा रहा है. और इसके परिणाम दिखते हैं, जब प्रार्थना में १० साल की बच्ची मधुर ताल में ढोलक बजाती है और उसकी हमउम्र सहपाठी हारमोनियम में कोई प्यारी धुन छेड़ती है. तब दिल खुद को गरीब कहता है.अंगीकृत विद्यालयों के छात्र पब्लिक स्कूलों से फुटबाल व क्रिकेट मैच खेलते हैं तथा फ़ाइनल,सेमीफाइनल तक पहुँचते हैं. प्रतिवर्ष कुछ छात्र जवाहर नवोदय विद्यालय के लिए चयनित होते हैं तो संस्था द्वारा विद्यालयों में नवोदय परीक्षा के लिए दी जा रही कोचिंग की सार्थकता सिद्ध होती है. परिणाम आ रहे हैं, पर धीरे-धीरे.
(सा  रे गा मा पा,प्राथमिक  पाठशाला  कुलेठी )
एक बार मैंने डॉ.बिष्ट को लिखा- 
"फल आयेंगे जरूर, चाहे देर से, एक दिन उस वृक्ष में जो कि रोपा गया है व सींचा गया है आपके द्वारा, चम्पावत जैसे मरूस्थल में जहाँ लोग गैर सरकारी संगठनों को भ्रष्टाचार का पर्याय कहते हैं."
(पंतनगर विश्वविद्यालय  के वैज्ञानिक LASRC में)
                   और अंत में, मेरा अनुभव साविद्या में काफी कुछ सीखने वाला रहा.एक पारदर्शी संस्था, बच्चों के समर्पित शिक्षक, काम करने का व्यवस्थित ढंग, सुझाव देने की आज़ादी, काम करने की स्वतंत्रता, लोकतान्त्रिक प्रणाली, ये हैं सविद्या के मेरे अनुभव और उम्मीद है मुझ जैसे साधारण छात्र से, जो न तो विज्ञान का विद्वान है और न अध्यापन में निपुण, द्वारा पढाये गए विषयों को जब छात्र सोचेंगे तो गैर परम्परागत तथा व्यावहारिक ढंग से सोचेंगे और उन्हें दवाइयों से फूले इस मोटे सर की याद ज़रूर आयेगी.
(राष्ट्रीय विज्ञान दिवस २०११ )

मेरे अनुभव : साविद्या के साथ -२

(आठवें सेमेस्टर की परीक्षाओं के बाद कुछ माह एक गैर सरकारी संगठन  "साविद्या" (साविद्या की वेबसाइट के लिए क्लिक करें) में काम किया , जो  पिछड़े सरकारी विद्यालयों के उन्नयन के लिए  काम करती है. साविद्या स्मारिका २०११ में "मेरे अनुभव : साविद्या के साथ " इसी शीर्षक के साथ मेरा छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ है , जिसका पहला भाग प्रस्तुत कर चुका हूँ , पेश है दूसरा भाग .....)
भाग - २ 
               ग्रीष्मावकाश में हमने निर्णय लिया की एक ओपन समर साइंस कैंप का आयोजन करेंगे . जिसमें कोई भी विद्यार्थी , किसी भी कक्षा का (६ से १२ तक), किसी भी विद्यालय का पंजीकरण करवा सकता था. समर कैंप शुरू हुआ, मैं भिन्न -भिन्न प्रयोग दिखाता और उसके सिद्धांत समझता और क्यूरेटर गौरव बोहरा प्रयोग प्रदर्शन में मेरी मदद करता. समर कैंप का आयोजन अच्छा रहा. औसतन प्रतिदिन पच्चीस से तीस छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया. ग्रीष्मावकाश के बाद मैंने सोचा क्योँ न कक्षाओं के पाठ्यक्रम के अनुसार प्रयोगों के module बनायें. हर कक्षा के लिए अलग module, जिससे छात्र पाठ्यक्रम को व्याहारिक रूप में समझ सकें.इसी बीच दो पब्लिक स्कूल 
१. मल्लिकार्जुन पब्लिक स्कूल     २.बीयरशिवा पब्लिक स्कूल  के कक्षा नौ एवं दस के छात्र-छात्राएं भी LASRC आये.
(Students from Mallikarjun  Public school at LASRC )
                  मैंने और गौरव ने इन्हें पाठ्यक्रम के अनुसार प्रयोग दिखाए .यह प्रयोग उनके पाठ्यक्रम से संबंधित थे तथा वे विषय को व्यावहारिक रूप से समझ रहे थे. पब्लिक स्कूल के साथ-साथ हमारे अंगीकृत विद्यालयों के छात्र भी प्रयोग सीखने आते थे, परन्तु नियमित रूप से नहीं. इसके पीछे भी कई व्यावहारिक परेशानियाँ थी.उनके नियमित न आने से मुझे बढा कष्ट होता, क्योंकि यदि प्रयोग छात्र नहीं सीखेंगे तो सारी चीजों का फायदा क्या? तो मैंने सुझाव दिया क्यों न मैं और गौरव अंगीकृत विद्यालयों में सप्ताह में एक निर्धारित दिन कुछ प्रयोगों के साथ जायें व छात्रों को प्रयोग दिखायें. सुझाव को निर्णय में परिवर्तित होने में देर न लगी. प्रारंभ में जूनियर स्कूल खर्ककार्की व डूंगरासेठी में क्रमशः सोमवार तथा शुक्रवार को जाना निश्चित हुआ. हम हफ्ते में दो दिन किसी एक कक्षा के module के अनुसार प्रयोग दिखाने विद्यालयों में जाते और बाकी के चार दिन module बनाने तथा प्रयोगों की मरम्मत का काम करते.अब मुझे उन व्यावहारिक कठिनाइयों का भान हुआ, कि क्यों हर सप्ताह छात्रों का खर्ककार्की से कुलेठी (दोनों के मध्य लगभग ५ km की दूरी है.)आना मुश्किल है. इसी बीच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के कारन मैंने LASRC जाना कम किया और अब तो लगभग बंद ही हो चुका है. लेकिन अब गौरव अकेले स्कूलों में जाता है, हर हफ्ते एक निर्धारित क्रम में.
(बीयरशिवा पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्राएं अपने विज्ञान अध्यापक के साथ LASRC में)   
                 मैं जब साविद्या से जुडा था तो मैं सोचता था कि मैं निर्धन बच्चों के लिए कुछ करने जा रहा हूँ. पर जितना भी थोडा-बहुत मैंने उन्हें सीखाया, उससे कहीं ज्यादा मैंने उनसे सीखा. ये बच्चे निर्धन नहीं हैं , ये तो बस निर्धन अभिभावकों के बच्चे हैं. ये उतने ही प्रतिभाशाली हैं, जितने हम मध्यमवर्गीय या उच्चवर्गीय परिवारों के बच्चे. उनकी जिज्ञासा गरीबी से दबी नहीं है, ये उतने ही जिज्ञासु हैं , जितने कि पब्लिक स्कूलों के छात्र. उन्हें तो पता ही नहीं की गरीबी क्या है और अमीरी क्या? वे मस्त हैं, आनंदित हैं बचपन में. कई बार ये आपको आश्चर्यचकित करते हैं अपने जवाबों से. इन बच्चों ने मुझे काफी कुछ सिखाया. डॉ. एच.डी.बिष्ट कई बार ईमेल के अंत में मुझे लिखते थे, कि इन बच्चों कि दुआएं तुम्हें जल्दी अच्छा करेंगी. और ये हुआ भी, धीरे-धीरे पता नहीं कब एक दिन LASRC में काम करते हुए मेरा विजन बिल्कुल साफ़ हो गया. मैं अक्सर खुद से कहता हूँ "I joined Savidya with blurred vision, but when I left I have clear vision." मेरी आँखों का विजन भी साफ़ हुआ व काफी हद तक जीवन का भी, और इसमें काफी बड़ी भूमिका इन बच्चों की रही.

Saturday 7 May, 2011

कर कर मैं हारा हर जतन

जगदीश 
       मेरे मित्र जगदीश कैड़ा या हमारे जिंदादिल जग्गी ने कभी मुझे ये गाना सुनाया था. कुछ माह में जगदीश कैड़ा से लेफ्टिनेंट जगदीश कैड़ा बनने वाले जग्गी उन दिनों प्रायः यह गाना सुना करते थे. जिसके पीछे कुछ सर्वविदित रहस्य थे. कालांतर में जग्गी के अधिकतर जतन फलीभूत हुए और मैं प्रार्थना करता हूं कि उनके शेष जतन भी फलीभूत हों.
   
     
        मेरे पसंदीदा गायकों में शुमार कैलाश खेर अपने गीतों के बोल भी खुद लिखते हैं. उनके अधिकतर गीतों के बोल स्त्रीलिंग में होते हैं,परन्तु ये गीत चंद अपवादों में से एक है. तो पेश है कैलाश खेर कि एल्बम "चांदन में" का यह गाना 
कर कर मैं हारा हर जतन (सुनने के लिए लिंक पर क्लिक करें)

Tuesday 5 April, 2011

आज़ादी की दूसरी लड़ाई

भ्रष्टाचार के खिलाफ जन युद्ध छिड़ चुका है. अन्ना हजारे जी ने इसे "आज़ादी की दूसरी लड़ाई" कहा है और आज से उनका आमरण अनशन जंतर मंतर में शुरू हो चुका है. INDIA AGAINST CORRUPTION के बैनर तले कई प्रसिद्ध समाज सेवक एकत्रित हुए हैं , जिनमे योगगुरु बाबा स्वामी रामदेव, श्री श्री रविशंकर, स्वामी अग्निवेश, अन्ना हजारे, किरण बेदी, RTI के प्रणेता अरविन्द केजरीवाल, सीबीआई के सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक बी.आर.लाल, जस्टिस संतोष हेगड़े, जे.ऍम.लिंगदोह समेत कई और समाजसेवी शामिल हैं.ये लोग केवल सरकार को कोस नहीं रहे हैं , अपितु भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय भी दे रहे हैं. इनके द्वारा सुझाया गया जन लोकपाल बिल भ्रष्टाचार की जांच करने वाले तंत्र में आमूल चूल परिवर्तन की बात कहता है. जन लोकपाल बिल जनता के लिए जनता द्वारा बनाया गया बिल है.इसी बिल को हकीकत में बदलने के लिए अन्ना जी आज से अनशन में बैठे हैं.
सरकार द्वारा बनाया गया लोकपाल बिल छलावा है, ये आपको जन लोकपाल बिल को पढने के बाद पता लग जायेगा. कोई भी राजनीतिक दल इस बिल को लाने की इच्छाशक्ति नहीं रखता है, ये भी जगजाहिर है. परन्तु महाराष्ट्र में दो वर्ष पूर्व ही सूचना का अधिकार कानून लाने को सरकार को मजबूर करने वाले अन्ना हजारे  (२००३ में,जबकि देश में २००५ में लागू हुआ), योग गुरु स्वामी रामदेव , किरण बेदी, अग्निवेश जी आदि को उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वाश है की वे इस बिल को कानून बना कर रहेंगे तथा उसके बाद भ्रष्टाचारियों के लिए कड़ी सजा  के लिए भी कानून लायेंगे.
अब समय नहीं है ड्राईंग रूम में बैठकर सरकार और भ्रष्टाचार को कोसने का, अगर आप भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं तो जुड़ जाइए इस जनयुद्ध में , किसी भी तरह ,जो भी आप कर सकते हैं. अगर आप सोचते हैं क़ि " कुछ भी कर लो भ्रष्टाचार दूर नहीं हो सकता", तो जरा हांगकांग की हिस्ट्री पढ़िए.सत्तर के दशक में भ्रष्टाचार से त्रस्त हांगकांग में जनता के भारी दबाव के कारण ICAC (Independent Commission Against Corruption ) का गठन हुआ और आज हांगकांग दुनिया के सबसे ईमानदार देशों में शुमार है.मुझे तो लगता है जन युद्ध का आगाज हो चुका है , अभी काफी लम्बी लड़ाई चलेगी क्योंकि राह इतनी आसान नहीं है, परन्तु विजय तो सच की ही होनी है.


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Saturday 26 March, 2011

मेरे अनुभव : साविद्या के साथ

(आठवें सेमेस्टर की परीक्षाओं के बाद कुछ माह एक गैर सरकारी संगठन  "साविद्या" (साविद्या की वेबसाइट के लिए क्लिक करें) में काम किया , जो  पिछड़े सरकारी विद्यालयों के उन्नयन के लिए  काम करती है. साविद्या स्मारिका २०११ में "मेरे अनुभव : साविद्या के साथ " इसी शीर्षक के साथ मेरा छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ है , जिसे यहाँ पर प्रस्तुत कर रहा हूँ ........)
भाग - १ 
                       साविद्या से मेरा परिचय  करीब डेढ़ साल पुराना है.इससे से पूर्व मेरी जानकारी  हिमवत्स नामक संस्था तक सीमित थी , जो कि डॉ एच. डी. बिष्ट जी के मार्गदर्शन में सरकारी विद्यालयों में काम कर रही है , परन्तु संस्था की पूर्ण गतिविधियों से मैं भली-भांति अवगत नहीं था. इंजीनियरिंग की पढाई के दौरान अनायास ही एक दिन मैंने गूगल सर्च इंजन में चम्पावत सर्च किया तो वहां मुझे साविद्या का लिंक मिला. जहाँ से मुझे साविद्या की पूर्ण गतिविधियों की जानकारी मिली. इसके साथ ही मुझे  एक इंजीनियरिंग छात्र द्वारा प्रेषित रिपोर्ट भी मिली, जिसने कुछ माह पूर्व ही संस्था द्वारा अंगीकृत विद्यालयों का निरीक्षण किया था. इस छात्र की रिपोर्ट ने मुझे काफी प्रभावित किया और मैंने सोचा की डिग्री पूरी होने के बाद ग्रीष्मावकाश में मैं भी अपनी सेवाएं संस्था को दे सकता हूँ. दीपावली अवकाश में मैंने अपनी इच्छा संस्था के संरक्षक श्री जी. बी. रस्यारा जी के सामने रखी, उन्होंने शाबासी देते हुए कहा क़ि तुम्हारा स्वागत है और अब इच्छा निर्णय में बदल गयी. इसी बीच सातवें सेमेस्टर क़ी परीक्षाओं के दौरान मैं बीमार पड़ गया और परीक्षा ख़त्म होने के बाद बीमारी और बढ गयी. पेट से शुरू हुआ दर्द, कमजोरी और तेज सिरदर्द में तब्दील हो गया. विजन blurred (धुंधला) हो गया था. कहाँ ऍम. टेक. की प्रवेश परीक्षा देनी थी यहाँ पहुँच गया अस्पताल , पांच महीने के आराम व इलाज के बाद लिख व पढ़ पाने में सक्षम हुआ और आठवें सेमेस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण कर डिग्री प्राप्त की. इलाज जारी था, मैं लिख  पढ़ सकता पर कोई सूक्ष्मक कार्य करने में परेशानी थी. ज्यादा पढ़ता तो सिरदर्द , ज्यादा टीवी देखता तो सिरदर्द. घर में अकेले समय व्यतीत करना मुश्किल था और मैं सोच रहा था कैसे खुद को व्यस्त रखूँ. तो एक दिन कमलेश सर ने सुझाव दिया क्यों नहीं तू कुछ दिन साविद्या में काम कर लेता है? मुझे अपना निर्णय याद आया जो कि मैं भूल ही चूका था इस आपाधापी में और सुझाव भी पसंद आया. रोजाना ३-४ km चलना भी हो जायेगा, क्योंकि दवाइयों से शरीर फूल रहा था और इससे अधिक महत्त्वपूर्ण वह काम भी कर पाऊंगा जो मैं करना चाहता था. तो अगले दिन प्राथमिक पाठशाला कुलेठी पहुंचा, मैनेजर श्री ऍम. सी.रस्यारा जी के सामने अपने इच्छा जाहिर की, उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया और ३ जून २०१० को मैं एक स्वयंसेवी के रूप में संस्था से जुड़ गया.
                        मेरा मानना है कि शिक्षा पीढियां बना सकती है और पीढियां परिवर्तित भी कर सकती है.शिक्षा का प्रभाव केवल पढने वाले छात्र पर ही नहीं पड़ता ,अपितु एक सुशिक्षित छात्र/छात्रा आगे चलकर एक सुशिक्षित पिता/माँ/पति/पत्नी तथा विस्तृत रूप में एक सुशिक्षित पीढ़ी का प्रणेता बनता है.शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं है,शिक्षा वह है जो हमें जीविका देती है,जो हमें व्यावहारिक बनाती है, जो हमें एक सोच देती है तथा जो हमें जीना सिखाती है . इसीलिए शिक्षक का स्थान समाज में सर्वोपरि है. चिकित्सक के हाथ में केवल उसके मरीज का जीवन होता है,पर शिक्षक के हाथ में छात्र के साथ-साथ उसकी पूरी पीढ़ी का जीवन होता है, ऐसी ही विचारधारा के साथ मैं साविद्या के साथ जुड़ा, जिससे कि ऐसी व्यवहारिक शिक्षा उन बच्चों को दे सकूँ जो कि साधनहीन हैं और जीवन कि मूलभूत आवश्यकताओं से विपन्न हैं.
(बच्चों के साथ संस्था के लोग)
             विज्ञान वर्ग से होने के कारण मैंने LASRC (Learning and Science Resource Center ) में काम शुरू किया. LASRC  एक ऐसा केंद्र है जहाँ प्राथमिक स्तर से लेकर बारहवीं तक के प्रयोग (विशेषकर भौतिकी के) उपलब्ध हैं. प्रयोग जो कि परम्परागत प्रयोगों से अलग हैं, बेकार सी दिखने वाली और सस्ती चीज़ों के बने हैं, परन्तु विज्ञानं के जटिलतम रहस्यों को सरलता से समझातें हैं.इन प्रयोगों को डिजाईन किया है, आई.आई.टी. कानपुर के प्रोफेसर डॉ. एच.सी.वर्मा ने , वही डॉ. एच.सी.वर्मा जिनकी "कांसेप्ट ऑफ़ फिजिक्स " पढ़कर ही हमने इंजीनियरिंग कि परीक्षाएं दी हैं. मैं काफी उत्साहित था ,बीमारी का ध्यान यदा कदा ही आता, यद्यपि विज़न अभी भी धुंधला था. दो-तीन घंटे LASRC में आराम से व्यतीत हो जाते, उसके बाद आराम और शाम को घूमना . मैं बीमार कहाँ था? कोई कह सकता था क्या कि मैं बीमार हूँ.
(पर्यावरण दिवस २०१० पर लगा LASRC का स्टाल ) 

Sunday 13 March, 2011

जापान तुम उबर जाओगे!

जापान , भगवान जिन्हें मजबूत बनाना चाहता है, उनकी बार-बार परीक्षा लेता है . हमें उम्मीद है तुम जल्द ही इस त्रासदी से उबर जाओगे. तीव्र भूकंप और उससे जनित सुनामी ने जो विनाश किया है , वह तुम्हारे मजबूत इरादों को डिगा नहीं सकता . हिरोशिमा - नागासाकी जैसी त्रासदी को झेलने के बाद भी जिस तरह तुम दुनिया की प्रमुख
*(फोटो स्रोत : इन्टरनेट )
 आर्थिक शक्ति हो, यह हमें विश्वाश दिलाता है की शीघ्र ही तुम इससे पार पा लोगे. प्रकृति की इस त्रासदी से हताहत हुए लोगों को हमारी सच्ची श्रधांजलि है. अखबारों में पानी में डूबे घरों, भयंकर भूकंप , बेदर्द सुनामी के अलावा तुम्हारी भूकंपरोधी भवन शैलियों तथा सटीक आपदा प्रबंधन के बारे में भी पड़ने को मिल रहा है. हमें विश्वाश है कि शीघ्र ही तुम दुनिया को पुनः दिखाओगे " विपरीत परिस्थितियों में भी आगे कैसे बढ़ा जाता है."

Monday 7 March, 2011

शिक्षा के व्यवसायीकरण से हो रहा नैतिक मूल्यों का पतन

हाल में ही हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत सामारोह में बोलते हुए केन्द्रीय मानव एवं संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शिक्षा के व्यवसायीकरण से हो रहे सामाजिक परिवर्तन के विषय में बात की . उन्होंने इसे शिक्षा में हो रहे नैतिक मूल्यों के पतन के लिए जिम्मेदार माना . कैसे इस समस्या से जूझा जाये , ये तो उन्होंने नहीं बताया , पर उनकी बातें शत प्रतिशत सही हैं . अब जब सरकार शिक्षा के क्षेत्र में अधिकतम निजी भागीदारी और  पीपीपी मोड की बात कर रही है , तो इससे शिक्षा का  व्यवसायीकरण नहीं होगा यह कैसे सुनिश्चित किया जायेगा , ये सोचनीय प्रश्न  है . द हिन्दू में छपी खबर का कुछ अनुवादित भाग प्रस्तुत है-
           "शिक्षा के व्यवसायीकरण से न केवल नैतिक मूल्यों में पतन हुआ है , अपितु कई समस्याओं का प्रादुर्भाव भी हुआ है , जिससे शिक्षा खोखली हो रही है"
           " ये  दुर्भाग्यशाली है , कि शिक्षा का उद्देश्य केवल उच्च वेतनिक  नौकरी दिलाने वाले  डिप्लोमा और डिग्री  प्राप्त करने तक सीमित हो गया है . केवल आर्थिक समृधि पाने क़ी इस दौड़ में नैतिक मूल्य पाश्र्व में चले गए हैं".
           आधुनिक शिक्षा तंत्र में  छात्रों के हितों तथा शिक्षा के  मूल्यों में आई कमी पर दुःख व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा -  " शिक्षा एक उच्च प्रतिफल देने वाला व्यवसाय बन गया है तथा छात्रों क़ी बढती उच्च वेतन क़ी आंकाक्षाओं के साथ बढता ही जा रहा है . शिक्षा का व्यवसायीकरण इस हद तक हो चुका है कि अधिकतर निजी  संस्थानों एवं महाविद्यालयों में सीटें आसानी से खरीदी जा सकती हैं."
...................................
पूरी खबर पड़ने के लिए क्लिक करें  द हिन्दू.  
   
आज के भ्रष्ट युग में , अगर हमें भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है तो, छात्रों को  व्यक्तिगत रूप से  नैतिक  बनाना होगा . और यहाँ तो हमारा शिक्षा तंत्र  छात्र जीवन से ही भ्रष्टाचार की ट्रेनिग दे रहा है , आपको कोई उपाय सूझता  है क्या ?

Wednesday 23 February, 2011

India Against Corruption

भ्रष्टाचार आज हमारे समाज के लिए एक अभिशाप हो गया है , कैंसर की तरह, जिसका कोई इलाज सूझता नहीं .
क्या इसका कोई इलाज नहीं है , क्या राजनीतिक इच्छाशक्ति से इसे मिटाया नहीं जा सकता , क्या एक और जनयुद्ध की हमें आवश्यकता है,इस पत्रकार वार्ता का  विडियो देखिये इस लिंक पर क्लिक करके .एक आशा है , पर हमें एक होना पड़ेगा, अभी विडियो देखिये

Wednesday 16 February, 2011

आज को संवार बन्दे

आज पहली चौपाल में प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी एक तुकबंदी , जो कभी मैंने अपने एक मित्र को निराश देखकर लिखी थी ..

क्या हुआ जो तू हार गया
 इस दौड़ में बन्दे ,
दौड़ने के मौके अभी कई
और  मिलेंगे

क्यों है तू निराश बन्दे,
क्यों होता उदास बन्दे
जो बीता सो बीता
अब आज को संवार बन्दे.

जो था नहीं मुक्कदर में,
उसके लिए क्यों आंसू बहाना
अब के नहीं तुझे  भटकना
बस है चलते ही जाना

क्या हुआ इस बार तू
जो चूक गया बन्दे,
जीतने के मौके  अभी
कई और मिलेंगे.