Saturday, 23 July 2011

मेरे अनुभव : साविद्या के साथ -२

(आठवें सेमेस्टर की परीक्षाओं के बाद कुछ माह एक गैर सरकारी संगठन  "साविद्या" (साविद्या की वेबसाइट के लिए क्लिक करें) में काम किया , जो  पिछड़े सरकारी विद्यालयों के उन्नयन के लिए  काम करती है. साविद्या स्मारिका २०११ में "मेरे अनुभव : साविद्या के साथ " इसी शीर्षक के साथ मेरा छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ है , जिसका पहला भाग प्रस्तुत कर चुका हूँ , पेश है दूसरा भाग .....)
भाग - २ 
               ग्रीष्मावकाश में हमने निर्णय लिया की एक ओपन समर साइंस कैंप का आयोजन करेंगे . जिसमें कोई भी विद्यार्थी , किसी भी कक्षा का (६ से १२ तक), किसी भी विद्यालय का पंजीकरण करवा सकता था. समर कैंप शुरू हुआ, मैं भिन्न -भिन्न प्रयोग दिखाता और उसके सिद्धांत समझता और क्यूरेटर गौरव बोहरा प्रयोग प्रदर्शन में मेरी मदद करता. समर कैंप का आयोजन अच्छा रहा. औसतन प्रतिदिन पच्चीस से तीस छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया. ग्रीष्मावकाश के बाद मैंने सोचा क्योँ न कक्षाओं के पाठ्यक्रम के अनुसार प्रयोगों के module बनायें. हर कक्षा के लिए अलग module, जिससे छात्र पाठ्यक्रम को व्याहारिक रूप में समझ सकें.इसी बीच दो पब्लिक स्कूल 
१. मल्लिकार्जुन पब्लिक स्कूल     २.बीयरशिवा पब्लिक स्कूल  के कक्षा नौ एवं दस के छात्र-छात्राएं भी LASRC आये.
(Students from Mallikarjun  Public school at LASRC )
                  मैंने और गौरव ने इन्हें पाठ्यक्रम के अनुसार प्रयोग दिखाए .यह प्रयोग उनके पाठ्यक्रम से संबंधित थे तथा वे विषय को व्यावहारिक रूप से समझ रहे थे. पब्लिक स्कूल के साथ-साथ हमारे अंगीकृत विद्यालयों के छात्र भी प्रयोग सीखने आते थे, परन्तु नियमित रूप से नहीं. इसके पीछे भी कई व्यावहारिक परेशानियाँ थी.उनके नियमित न आने से मुझे बढा कष्ट होता, क्योंकि यदि प्रयोग छात्र नहीं सीखेंगे तो सारी चीजों का फायदा क्या? तो मैंने सुझाव दिया क्यों न मैं और गौरव अंगीकृत विद्यालयों में सप्ताह में एक निर्धारित दिन कुछ प्रयोगों के साथ जायें व छात्रों को प्रयोग दिखायें. सुझाव को निर्णय में परिवर्तित होने में देर न लगी. प्रारंभ में जूनियर स्कूल खर्ककार्की व डूंगरासेठी में क्रमशः सोमवार तथा शुक्रवार को जाना निश्चित हुआ. हम हफ्ते में दो दिन किसी एक कक्षा के module के अनुसार प्रयोग दिखाने विद्यालयों में जाते और बाकी के चार दिन module बनाने तथा प्रयोगों की मरम्मत का काम करते.अब मुझे उन व्यावहारिक कठिनाइयों का भान हुआ, कि क्यों हर सप्ताह छात्रों का खर्ककार्की से कुलेठी (दोनों के मध्य लगभग ५ km की दूरी है.)आना मुश्किल है. इसी बीच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के कारन मैंने LASRC जाना कम किया और अब तो लगभग बंद ही हो चुका है. लेकिन अब गौरव अकेले स्कूलों में जाता है, हर हफ्ते एक निर्धारित क्रम में.
(बीयरशिवा पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्राएं अपने विज्ञान अध्यापक के साथ LASRC में)   
                 मैं जब साविद्या से जुडा था तो मैं सोचता था कि मैं निर्धन बच्चों के लिए कुछ करने जा रहा हूँ. पर जितना भी थोडा-बहुत मैंने उन्हें सीखाया, उससे कहीं ज्यादा मैंने उनसे सीखा. ये बच्चे निर्धन नहीं हैं , ये तो बस निर्धन अभिभावकों के बच्चे हैं. ये उतने ही प्रतिभाशाली हैं, जितने हम मध्यमवर्गीय या उच्चवर्गीय परिवारों के बच्चे. उनकी जिज्ञासा गरीबी से दबी नहीं है, ये उतने ही जिज्ञासु हैं , जितने कि पब्लिक स्कूलों के छात्र. उन्हें तो पता ही नहीं की गरीबी क्या है और अमीरी क्या? वे मस्त हैं, आनंदित हैं बचपन में. कई बार ये आपको आश्चर्यचकित करते हैं अपने जवाबों से. इन बच्चों ने मुझे काफी कुछ सिखाया. डॉ. एच.डी.बिष्ट कई बार ईमेल के अंत में मुझे लिखते थे, कि इन बच्चों कि दुआएं तुम्हें जल्दी अच्छा करेंगी. और ये हुआ भी, धीरे-धीरे पता नहीं कब एक दिन LASRC में काम करते हुए मेरा विजन बिल्कुल साफ़ हो गया. मैं अक्सर खुद से कहता हूँ "I joined Savidya with blurred vision, but when I left I have clear vision." मेरी आँखों का विजन भी साफ़ हुआ व काफी हद तक जीवन का भी, और इसमें काफी बड़ी भूमिका इन बच्चों की रही.

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