Saturday 23 July, 2011

मेरे अनुभव : साविद्या के साथ -३

(आठवें सेमेस्टर की परीक्षाओं के बाद कुछ माह एक गैर सरकारी संगठन  "साविद्या" (साविद्या की वेबसाइट के लिए क्लिक करें) में काम किया , जो  पिछड़े सरकारी विद्यालयों के उन्नयन के लिए  काम करती है. साविद्या स्मारिका २०११ में "मेरे अनुभव : साविद्या के साथ " इसी शीर्षक के साथ मेरा छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ है , जिसका पहला व दूसरा भाग प्रस्तुत कर चुका हूँ , पेश है तीसरा एवं अंतिम भाग .....)
भाग - ३ 
                 मैं पुनः लिख रहा हूँ , ये छात्र-छात्राएं निर्धन नहीं हैं, अपितु निर्धन है तो हमारी शिक्षा प्रणाली तथा सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत, जो इन्हें निर्धन ही रहने देती है. छात्रों के जवाबों ने मुझे कई बार आश्चर्यचकित किया. एक उदाहरण प्रस्तुत करूँगा. एक बार खर्ककार्की में घर्षण बल समझाने के बाद मैंने छात्रों से पूछा, अपने जीवन या आसपास से घर्षण का कोई उदाहरण दो. एक छात्र खड़ा हुआ और बोला, " सर चप्पल, जब वो घिस जाते हैं तो हम फिसलते हैं." मैं आश्चर्यचकित था, क्या उदाहरण था, उस छात्र ने घर्षण का बिल्कुल व्यावहारिक उदाहरण दिया जो वह अपने जीवन में अनुभव कर चुका था.क्या आप अब भी कहेंगे की ये छात्र गरीब हैं,पिछड़े हैं. ऐसे ही कई उदाहरण मेरे सामने आये जो प्रदर्शित करते हैं क़ि मेधा व प्रतिभा की कमी नहीं है इन बच्चों में. कमी है तो प्रयासों क़ि जो इन्हें निखार सकें. और यही प्रयास 'साविद्या' कर रही है, चम्पावत क्षेत्र में अपने सात अंगीकृत विद्यालयों में हर उस सुविधा और मौके को उपलब्ध करा कर, जो सरकारी तंत्र नहीं करा पा रहा है. और इसके परिणाम दिखते हैं, जब प्रार्थना में १० साल की बच्ची मधुर ताल में ढोलक बजाती है और उसकी हमउम्र सहपाठी हारमोनियम में कोई प्यारी धुन छेड़ती है. तब दिल खुद को गरीब कहता है.अंगीकृत विद्यालयों के छात्र पब्लिक स्कूलों से फुटबाल व क्रिकेट मैच खेलते हैं तथा फ़ाइनल,सेमीफाइनल तक पहुँचते हैं. प्रतिवर्ष कुछ छात्र जवाहर नवोदय विद्यालय के लिए चयनित होते हैं तो संस्था द्वारा विद्यालयों में नवोदय परीक्षा के लिए दी जा रही कोचिंग की सार्थकता सिद्ध होती है. परिणाम आ रहे हैं, पर धीरे-धीरे.
(सा  रे गा मा पा,प्राथमिक  पाठशाला  कुलेठी )
एक बार मैंने डॉ.बिष्ट को लिखा- 
"फल आयेंगे जरूर, चाहे देर से, एक दिन उस वृक्ष में जो कि रोपा गया है व सींचा गया है आपके द्वारा, चम्पावत जैसे मरूस्थल में जहाँ लोग गैर सरकारी संगठनों को भ्रष्टाचार का पर्याय कहते हैं."
(पंतनगर विश्वविद्यालय  के वैज्ञानिक LASRC में)
                   और अंत में, मेरा अनुभव साविद्या में काफी कुछ सीखने वाला रहा.एक पारदर्शी संस्था, बच्चों के समर्पित शिक्षक, काम करने का व्यवस्थित ढंग, सुझाव देने की आज़ादी, काम करने की स्वतंत्रता, लोकतान्त्रिक प्रणाली, ये हैं सविद्या के मेरे अनुभव और उम्मीद है मुझ जैसे साधारण छात्र से, जो न तो विज्ञान का विद्वान है और न अध्यापन में निपुण, द्वारा पढाये गए विषयों को जब छात्र सोचेंगे तो गैर परम्परागत तथा व्यावहारिक ढंग से सोचेंगे और उन्हें दवाइयों से फूले इस मोटे सर की याद ज़रूर आयेगी.
(राष्ट्रीय विज्ञान दिवस २०११ )

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