हाल में ही हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत सामारोह में बोलते हुए केन्द्रीय मानव एवं संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शिक्षा के व्यवसायीकरण से हो रहे सामाजिक परिवर्तन के विषय में बात की . उन्होंने इसे शिक्षा में हो रहे नैतिक मूल्यों के पतन के लिए जिम्मेदार माना . कैसे इस समस्या से जूझा जाये , ये तो उन्होंने नहीं बताया , पर उनकी बातें शत प्रतिशत सही हैं . अब जब सरकार शिक्षा के क्षेत्र में अधिकतम निजी भागीदारी और पीपीपी मोड की बात कर रही है , तो इससे शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं होगा यह कैसे सुनिश्चित किया जायेगा , ये सोचनीय प्रश्न है . द हिन्दू में छपी खबर का कुछ अनुवादित भाग प्रस्तुत है-
"शिक्षा के व्यवसायीकरण से न केवल नैतिक मूल्यों में पतन हुआ है , अपितु कई समस्याओं का प्रादुर्भाव भी हुआ है , जिससे शिक्षा खोखली हो रही है"
" ये दुर्भाग्यशाली है , कि शिक्षा का उद्देश्य केवल उच्च वेतनिक नौकरी दिलाने वाले डिप्लोमा और डिग्री प्राप्त करने तक सीमित हो गया है . केवल आर्थिक समृधि पाने क़ी इस दौड़ में नैतिक मूल्य पाश्र्व में चले गए हैं".
आधुनिक शिक्षा तंत्र में छात्रों के हितों तथा शिक्षा के मूल्यों में आई कमी पर दुःख व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा - " शिक्षा एक उच्च प्रतिफल देने वाला व्यवसाय बन गया है तथा छात्रों क़ी बढती उच्च वेतन क़ी आंकाक्षाओं के साथ बढता ही जा रहा है . शिक्षा का व्यवसायीकरण इस हद तक हो चुका है कि अधिकतर निजी संस्थानों एवं महाविद्यालयों में सीटें आसानी से खरीदी जा सकती हैं."
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पूरी खबर पड़ने के लिए क्लिक करें द हिन्दू.
आज के भ्रष्ट युग में , अगर हमें भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है तो, छात्रों को व्यक्तिगत रूप से नैतिक बनाना होगा . और यहाँ तो हमारा शिक्षा तंत्र छात्र जीवन से ही भ्रष्टाचार की ट्रेनिग दे रहा है , आपको कोई उपाय सूझता है क्या ?
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